Pradosh Vrat प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. --------------------------------------------------
Pradosh Vrat
प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं.
--------------------------------------------------
हमारे धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार के व्रत एवं साधनाओं का वर्णन किया गया है. इन व्रत एवं साधनाओं को करके कोई भी व्यक्ति अपनी मनोकामना को पूरा कर सकता है. यदि पूर्ण श्रद्धाभाव से कोई व्रत किया जाता है, तो ऐसा व्रत अवश्य फलदायी होता है. सनातन धर्म में ऐसे बहुत से व्रत हैं जिनको पूर्ण श्रद्धाभाव से करने पर मनुष्य अपने जीवन में पुण्य और लाभ अर्जित कर सकता है. लेकिन प्रदोष व्रत का हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है.
प्रदोष व्रत भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है. भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न हो कर आशीर्वाद देते है इसीलिए भगवान शिव को आशुतोष भी कहा जाता है. जो भी मनुष्य प्रदोष व्रत को पूरी श्रद्धाभाव और भक्तिपूर्वक करता है उसको भगवान शंकर की असीम कृपा प्राप्त होती है और उसकी मनोकामना पूर्ण होती है.
प्रदोष व्रत क्या है? :
हिन्दू धर्म में जिस तरह एकादशी का महत्व है, एकादशी का सम्बन्ध भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है और भगवान विष्णु को अपना ईष्ट देव मानने वाले विष्णु भक्त, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एकादशी का व्रत करते है.
उसी तरह भगवान शिव में अपनी आस्था रखने वाले शिव भक्त भगवान शिव का सानिध्य प्राप्त करने और भगवान शिव के आशीर्वाद से अपना मनोरथ पूर्ण करने के उदेश्य से पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ प्रदोष व्रत करते हैं.
जिस तरह प्रत्येक महीने दो एकादशी होती हैं उसी तरह प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है और इस तरह हर महीने दो प्रदोष व्रत भी होते हैं.
इस व्रत को प्रदोष व्रत इसलिए कहा जाता है कि एक समय चंद्र देव को बहुत ही गंभीर रोग हो गया था और इस रोग के कारण उनको बहुत ही भयंकर कष्ट हो रहा था, तब भगवान शिव ने चंद्र देव के रोग और दोष को दूर करके उनको त्रयोदशी के दिन एक नया जीवन प्रदान किया इस तरह त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाने लगा.
प्रदोष व्रत करने की विधि :
प्रदोष व्रत करने के दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्यकर्म करने के उपरांत स्नान आदि करने के बाद साफ स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए. इसके बाद शिव मन्दिर जाकर या अपने घर के मन्दिर में साफ सफाई करने बाद दीपक प्रज्वलित करें. दीप प्रज्वलित करने के उपरांत भगवान भोलेनाथ को गंगा जल से अभिषेक करें. इसके बाद भगवान भोले नाथ को पुष्प अर्पित करें. भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती व भगवान गणेश का भी पूजन करें. क्योंकि किसी भी शुभ कार्य या कोई अनुष्ठान शुरु करने से पहले भगवान गणेश का पूजन किया जाता है. अब भगवान शिव को भोग लगायें, इसके बाद भगवान भोले नाथ की आरती करें. और पूरे दिन निराहार व्रत रखने के साथ भगवान का ध्यान करते हुए भोलेनाथ के मंत्र का जाप करते रहें.
तत्पश्चात सायंकाल सूर्यास्त होने के उपरांत प्रदोष काल में पुनः स्नान करने के बाद भगवान शिव का विधि विधान पूर्वक पूजन करें और भगवान को भोग लगायें. प्रदोष व्रत की पूजा करने का समय सूर्यास्त होने के बाद लगभग एक घंटे तक होता है अतः प्रदोष व्रत में समय का विशेष ध्यान रखते हुए पूजा को संपन्न करना चाहिए.
पूजन सामग्री :
एक जल से भरा हुआ कलश, गंगाजल, आरती करने के लिए थाली, कच्चा दूध, दही, शहद, सफेद फूल और सफेद फूल की माला, धूप, दीप, कपूर, बेलपत्र, धतूरा, सफेद चन्दन एवं सफेद मिष्ठान, सफेद वस्त्र, दूब एवं फल आदि.
प्रदोष व्रत कब से शुरू किया जाना चाहिए :
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत किसी भी महीने की कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को शुरू किया जा सकता है. लेकिन श्रावण मास की त्रयोदशी से इस व्रत को शुरू करना विशेष फलदायी माना जाता है. इसके अलावा महाशिवरात्रि में भगवान शिव की पूजा करने के बाद से प्रदोष व्रत को शुरू किया जा सकता है. इस व्रत को 11, 21, या 51 त्रयोदशी तिथियों तक करने से मनोकामना पूर्ण होती है.
प्रदोष व्रत किसके लिए वर्जित है :
हिन्दू धर्म के अन्य व्रतों की तरह ही प्रदोष व्रत को कोई भी, किसी भी उम्र का स्वस्थ व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) कर सकता है. इस व्रत को करने के लिए किसी को भी मनाही नहीं है. लेकिन व्रत को पूरे श्रद्धाभाव और नियम पूर्वक करना चाहिए.
प्रदोष व्रत के दिन कौन से कार्य नहीं करना चाहिए :
- प्रदोष व्रत के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन या रात्रि में अन्न ग्रहण नही करना चाहिए.
- व्रत के दिन नमक का सेवन पूर्ण रूप से वर्जित है अतः नमक का सेवन बिलकुल भी नही करना चाहिए.
- इस व्रत के दिन ब्रह्मचर्य के नियम का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए और इस ब्रह्मचर्य के नियम को भंग नही करना चाहिए.
- प्रदोष व्रत के दिन अपने शरीर से किसी को कष्ट नही पंहुचाना चाहिए. इसके साथ ही अपने मन और चित्त में क्रोध, लोभ और ईर्ष्या जैसे गलत विचारों को नहीं लाना चाहिए.
- व्रत के दिन किसी भी तरह का मांसाहार या तामसिक भोजन का प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए.
प्रदोष व्रत का महत्त्व और फल :
- पूर्ण श्रद्धाभाव और नियमानुसार जो भी स्त्री या पुरुष इस व्रत को करते हैं. उनको इस व्रत के करने से कई तरह के दोषों से मुक्ति मिलती है तथा उनके अनेक तरह के संकटों का भी निवारण होता है.
- यदि रविवार को त्रयोदशी पड़ती है तो प्रदोष व्रत करने से व्रत करने वाले की आयु में वृद्धि होती है तथा उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है इस तरह रविवार के दिन प्रदोष व्रत करने से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
- सोमवार और मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत करने से सभी तरह के रोग दूर होते हैं, इस तरह यह व्रत आरोग्य प्रदान करता है और व्रत करने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
- बुधवार के दिन प्रदोष व्रत करने व्उरत करने वाले उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है.
- यदि गुरुवार के दिन त्रयोदशी है तो प्रदोष व्रत करने से व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है.
- शुक्रवार के दिन किया जाने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति प्रदान करता है.
- शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करने से संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है.
- जब अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.
टिप्पणियाँ