Pradosh Vrat प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. --------------------------------------------------
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल अवश्य किया जाता है. और इस मिट्टी के बिना मूर्ति पूर्ण नहीं मानी जाती है. आखिर इस अनोखी परम्परा का क्या कारण है आइए जानते हैं.
इस वर्ष नवरात्रि के त्यौहार की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 से होने वाली है. और यह त्यौहार 23 अक्टूबर 2023 को महानवमी तक मनाया जायेगा. इन 9 दिनों में प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग अलग रूपों का पूजन किया जाता है. और इस तरह यह पावन नवरात्रि का त्यौहार 9 दिनों तक बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि में उत्तर भारत और उत्तर पूर्व भारत से लेकर देशभर में मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना करने के बाद मां दुर्गा की पूजा होती है. इसलिए इस शारदीय नवरात्रि पर्व को दुर्गोत्सव या दुर्गा पूजा भी कहते हैं. इस साल नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर 2023 से होगी और दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर 2023 से शुरु होने वाली है.
दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करने के लिए कई महीने पहले से ही मूर्ति का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है. देशभर में कई जगह दुर्गा पूजा पंडाल बना कर मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है. लेकिन क्या आप जानते है कि, मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति का निर्माण करने के लिए वेश्याओं की आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल अवश्य किया जाता है. और इस मिट्टी के बिना मूर्ति पूर्ण नहीं मानी जाती है. आखिर इस अनोखी परम्परा का क्या कारण है आइए जानते हैं.
मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए ये 4 महत्वपूर्ण चीजे बहुत जरूरी होती है
मां दुर्गा की प्रतिमा को पूर्ण रूप से निर्माण करने के लिए कई सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन मूर्ति का निर्माण करने में यदि वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल नही किया जाता है तो ऐसे में मां दुर्गा की प्रतिमा को पूर्ण नही माना जाता है. लेकिन इसके साथ ही बाकी चीजों को भी बहुत आवश्यक माना जाता है. मूर्ति निर्माण की अन्य सामग्रियों के साथ इन 4 सामग्रियों को बहुत जरूरी माना जाता है. जिसमे से पहली है- गंगा की मिट्टी, दूसरी है - गोमूत्र, तीसरी है - गाय का गोबर, और चौथी है - वेश्यालय की मिट्टी. और हमेसा से इसी तरह से मूर्ति का निर्माण होता रहा है. और सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है. वेश्याओं के आंगन की ही मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है. आइये जानते हैं इस परंपरा बारे में.
आखिर क्यों वेश्यालय की मिट्टी से ही बनती है मां दुर्गा की प्रतिमा
मां दुर्गा की प्रतिमा निर्माण में वेश्यालय की मिट्टी का प्रयोग करने को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हैं. उनमे से एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के लिए गंगा तट पर जा रही थीं. तभी उन्होंने गंगा घाट पर एक कुष्ठ रोग से ग्रसित एक व्यक्ति को बैठे हुए देखा. वह कुष्ठ रोगी लोगों से गंगा स्नान करवाने के लिए प्रार्थना कर रहा था. लेकिन उसके पास से गुजरने वाले लोगों में से किसी ने भी उसकी प्रार्थना नहीं सुनी. इसके बाद जब उन वेश्याओं ने उस रोगी को देखा तो उसको ले जाकर गंगा स्नान करवाया. वह कुष्ठ रोगी और कोई दूसरा नहीं बल्कि भगवान शिव ही थे. भगवान शिवजी वेश्याओं से अति प्रसन्न हुए और उन वेश्याओं को वरदान मांगने को कहा. तब वेश्याओं ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि, अब से मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण करने के लिए हमारे आंगन की मिट्टी का भी प्रयोग किया जाए और हमारे आंगन की मिट्टी के बिना मां दुर्गा की प्रतिमा ना बन पाए. भगवान शिव ने वेश्याओं को यह वरदान दे दिया और तब से लेकर अबतक यही परंपरा चली आ रही है.
एक दूसरी मान्यता के अनुसार - मां दुर्गा जी की मूर्ति का निर्माण सभी लोगों के सहयोग से होता रहा है. मूर्ति निर्माण के समय मंदिर के पुजारी सभी लोगों से उनकी सामर्थ्य के अनुसार मूर्ति निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों को लेने जाते थे, और इसके साथ ही पुजारी वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से भी उनके आंगन की केवल मिट्टी मांगकर लाते थे और इस तरह से सभी के सहयोग से मंदिर के लिए मूर्ति बनाई जाती थी. और धीरे-धीरे यह परंपरा ही हो गई. और इस प्रकार दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की जो भी मूर्तियां बनाई जाती हैं, उसमें वेश्यालय मिट्टी का इस्तेमाल होने लगा.
इसके अलावा एक अन्य मान्यता यह भी है कि, जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में किसी वेश्या के पास जाता है तब वह अपने सभी पुण्य कर्म और अपनी पवित्रता को उसके द्वार पर त्यागकर ही भीतर जाता है. इसलिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है. यही कारण है कि मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी प्रयोग में जाती है.
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