पशुपति व्रत किस तरह करे, पशुपति व्रत की सम्पूर्ण विधि, पशुपतिनाथ व्रत की विधि, पशुपति व्रत कैसे करे – संपूर्ण जानकारी |
पशुपतिनाथ का व्रत करने का मुख्य उद्देश्य भगवान शंकर को प्रसन्न करना होता है, इस व्रत को करने से पूर्व भक्तों को यह जानकारी होना चाहिए कि व्रत करने का उद्देश्य मात्र भूखा रहना ही नहीं है बल्कि भक्त उपवास को इसलिए कर रहा है जिससे वह अपने जीवन में भगवान शिव के प्रति प्रेम और अपनी आध्यात्मिक उन्नति कर सकें. पशुपतिनाथ व्रत के अनेकों लाभ है.
पशुपति नाथ जी की कथा
पशुपति नाथ की कथा का शिव महापुराण और रूद्र पुराण में कई बार वर्णन किया गया है कि जो भक्त पशुपतिनाथ जी की कथा को श्रद्धापूर्वक श्रवण करता है , श्रवण करने मात्र से ही उसके सारे पापों का अंत हो जाता है, उसे अत्यंत आनंद की प्राप्ति होती है और वह भगवान शिव का अत्यधिक प्रिय हो जाता है.
एक समय, जब भगवान शिव चिंकारा का रूप धारण कर निद्रा ध्यान में मग्न थे.
उसी समय दानवों और राक्षसों ने तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा दी, और इस तरह देवी-देवताओं पर भारी विपत्ति आ पड़ी. उस समय देवताओं को यह ज्ञात था कि इन राक्षसों की समस्या का निदान केवल भगवान शंकर ही कर सकते हैं.
इसलिए सभी देवतागण भगवान शिव को वाराणसी में वापस लानें के प्रयत्न करने लगे. और भगवान शिव को मानाने के लिए शिव के पास गए.
परंतु जब भगवान शिव ने उन सभी देवी देवताओं को अपनी और आते हुए देखा तो भगवान शिव ने नदी में छलांग लगा दी। और उनकी छलांग इतनी तीव्र थी कि उन्होंने जो चिंकारा का रूप धारण कर रखा था उस चिंकारा के सींग के चार टुकड़े हो गए.
यह देखकर सभी देवी देवता भगवान शंकर से प्रकट होने की प्रार्थना करने लगे.
उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए और इस चतुर्मुख लिंग को पशुपतिनाथ कहा गया है. इस प्रकार पशुपतिनाथ जी की पूजा और व्रत करने का विधान आया।
पशुपति व्रत करने की विधि (पशुपति व्रत कैसे करे)
- सर्वप्रथम यह ध्यान रखना है कि पशुपतिनाथ जी का व्रत सोमवार को ही किया जाता है.
- इस व्रत को करने के लिए सभी भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में उठना अति आवश्यक है.
- ब्रह्म मुहूर्त में उठने के उपरांत स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्रो को धारण करना आवश्यक है.
- इसके साथ ही भक्तों को निरंतर अपने मुख से या फिर अपने मन में ही "श्री शिवाय नमस्तुभयम" का जाप करते रहना है.
- पशुपतिनाथ की पूजा करने के लिए थाली में कुमकुम, अबीर, गुलाल, अश्वगंधा, पीला चंदन, लाल चंदन और थाली में कुछ चावल के दाने रखें, यहाँ पर यह ध्यान रखना है कि चावल के दाने खंडित ना हो.
- इसके साथ ही पूजा की थाली में धतूरा और आंकड़ा के फूलों या फलों को भी रख लेना है.
- पूजा की थाली में पूजा की सामग्री और बेलपत्र आदि लेकर अपने मन में श्री शिवाय नमस्तुभयम का निरंतर जाप करते हुए मंदिर में प्रवेश करें.
- मन्दिर के अन्दर जाने पर अगर शिवलिंग के आसपास सफाई नहीं है तो सबसे पहले भक्तों को मन्दिर के अन्दर और शिवलिंग के आसपास सफाई करनी चाहिए.
- मन्दिर और शिवलिंग के आसपास सफाई करने के बाद सभी पूजा सामग्रियों का इस्तेमाल करते हुए शिवलिंग का पूजन शुरू करें और शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करें।
- शिवलिंग का अभिषेक शुरू करते समय यह स्मरण रखना चाहिए कि शिवलिंग का अभिषेक सबसे ऊपरी भाग पर जल डालकर ही शुरू करें.
- भगवान पशुपतिनाथ जी को अर्पित करने के लिए जो भी प्रसाद भक्तों ने श्रद्धा पूर्वक बनाया है उस प्रसाद को जलधारी में ना रखें.
- बेलपत्र पूजा सामग्री का मुख्य अभिन्न भाग है और कई बार बेलपत्र भक्तों को उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसी स्थिति में जो बेलपत्र शिवलिंग पर पहले से चढ़े हुए है उन्ही बेलपत्रों को साफ करके भी शिवलिंग को अर्पित किया जा सकता है.
- इस तरह से सुबह की पूजा करनी है और पूजा के बाद पशुपतिनाथ की आरती करनी है. और शाम को भी यही प्रक्रिया अपनाकर पुनः पूजा और आरती करनी है.
- इसके साथ ही पूजा की थाली में 6 दिये (दीपक) रखने है, और उन 6 दिये में से 5 दिये मंदिर में प्रज्वलित करना है और बचा हुआ एक दिया अपने घर के दरवाजे के बाहर दाई तरफ प्रज्वलित करना है.
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