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प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण जानकारी – पंडित प्रदीप मिश्रा

 Pradosh Vrat प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. --------------------------------------------------

पशुपति व्रत की संपूर्ण जानकारी – पंडित प्रदीप मिश्रा

 पशुपति व्रत किस तरह करे, पशुपति व्रत की सम्पूर्ण विधि, पशुपतिनाथ व्रत की विधि, पशुपति व्रत कैसे करे – संपूर्ण जानकारी |


पशुपतिनाथ का व्रत करने का मुख्य उद्देश्य भगवान शंकर को प्रसन्न करना होता है, इस व्रत को करने से पूर्व भक्तों को यह जानकारी होना चाहिए कि व्रत करने का उद्देश्य मात्र भूखा रहना ही नहीं है बल्कि भक्त उपवास को इसलिए कर रहा है जिससे वह अपने जीवन में भगवान शिव के प्रति प्रेम और अपनी आध्यात्मिक उन्नति कर सकें. पशुपतिनाथ व्रत के अनेकों लाभ है. 

Pashupati Vrat By Pradeep Mishra


पशुपति नाथ जी की कथा

पशुपति नाथ की कथा का शिव महापुराण और रूद्र पुराण में कई बार वर्णन किया गया है कि जो भक्त पशुपतिनाथ जी की कथा को श्रद्धापूर्वक श्रवण करता है , श्रवण करने मात्र से ही उसके सारे पापों का अंत हो जाता है, उसे अत्यंत आनंद की प्राप्ति होती है और वह भगवान शिव का अत्यधिक प्रिय हो जाता है.

एक समय, जब भगवान शिव चिंकारा का रूप धारण कर निद्रा ध्यान में मग्न थे.

उसी समय दानवों और राक्षसों ने तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा दी, और इस तरह देवी-देवताओं पर भारी विपत्ति आ पड़ी. उस समय देवताओं को यह ज्ञात था कि इन राक्षसों की समस्या का निदान केवल भगवान शंकर ही कर सकते हैं.

इसलिए सभी देवतागण भगवान शिव को वाराणसी में वापस लानें के प्रयत्न करने लगे. और भगवान शिव को मानाने के लिए शिव के पास गए.

परंतु जब भगवान शिव ने उन सभी देवी देवताओं को अपनी और आते हुए देखा तो भगवान शिव ने नदी में छलांग लगा दी। और उनकी छलांग इतनी तीव्र थी कि उन्होंने जो चिंकारा का रूप धारण कर रखा था उस चिंकारा के सींग के चार टुकड़े हो गए.

यह देखकर सभी देवी देवता भगवान शंकर से प्रकट होने की प्रार्थना करने लगे.

उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए और इस चतुर्मुख लिंग को पशुपतिनाथ कहा गया है. इस प्रकार पशुपतिनाथ जी की पूजा और व्रत करने का विधान आया।

पशुपति व्रत करने की विधि (पशुपति व्रत कैसे करे)

जिस तरह से देवी देवताओ ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया था उस विधि का वर्णन शिव महापुराण और रूद्र पुराण में किया गया है.
 इन पुराणों के अनुसार पशुपतिनाथ व्रत करने का प्रमुख उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना ही होता है. इस व्रत को करने के लिए निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना होता है.

  • सर्वप्रथम यह ध्यान रखना है कि पशुपतिनाथ जी का व्रत सोमवार को ही किया जाता है.
  • इस व्रत को करने के लिए सभी भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में उठना अति आवश्यक है.
  • ब्रह्म मुहूर्त में उठने के उपरांत स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्रो को धारण करना आवश्यक है.
  • इसके साथ ही भक्तों को निरंतर अपने मुख से या फिर अपने मन में ही "श्री शिवाय नमस्तुभयम" का जाप करते रहना है.
  • पशुपतिनाथ की पूजा करने के लिए थाली में कुमकुम, अबीर, गुलाल, अश्वगंधा, पीला चंदन, लाल चंदन और थाली में कुछ चावल के दाने रखें, यहाँ पर यह ध्यान रखना है कि चावल के दाने खंडित ना हो.
  • इसके साथ ही पूजा की थाली में धतूरा और आंकड़ा के फूलों या फलों को भी रख लेना है.
लेकिन बहुत से भक्त यह सोंचते है कि यदि सम्पूर्ण पूजा सामग्री एकत्रित नही हो पाती है तो पशुपतिनाथ का व्रत अधूरा रह जायेगा और भगवान शिव हम से प्रसन्न नहीं होंगे. लेकिन भोलेनाथ के भक्तों को यह चिंता अपने मन से निकाल देनी है. 
क्योंकि जिस प्रकार से एक पिता अपने पुत्र की चिंता करता है उसी प्रकार से भगवान शिव अपने भक्तों की चिंता रखते हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए भक्तों को बहुत कठिन परिश्रम नहीं करना है अगर एक लोटा जल भी हमने भोलेनाथ को प्रेम से अर्पित किया है तो वह ही बहुत है.
इसलिए जितनी भी पूजा सामग्री आप एकत्रित कर सकते है उसी पूजा सामग्री से पशुपतिनाथ जी की पूजा कर सकते है.

पशुपतिनाथ जी की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जाती है इसलिए पूजा की सामग्री की मात्रा इतनी अधिक  रखनी है जिससे दोनों समय की पूजा के लिए सामग्री पर्याप्त बनी रहे. 
  • पूजा की थाली में पूजा की सामग्री और बेलपत्र आदि लेकर अपने मन में श्री शिवाय नमस्तुभयम का निरंतर जाप करते हुए मंदिर में प्रवेश करें.
  • मन्दिर के अन्दर जाने पर अगर शिवलिंग के आसपास सफाई नहीं है तो सबसे पहले भक्तों को मन्दिर के अन्दर और शिवलिंग के आसपास सफाई करनी चाहिए.
  • मन्दिर और शिवलिंग के आसपास सफाई करने के बाद सभी पूजा सामग्रियों का इस्तेमाल करते हुए शिवलिंग का पूजन शुरू करें और शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करें।
  • शिवलिंग का अभिषेक शुरू करते समय यह स्मरण रखना चाहिए कि शिवलिंग का अभिषेक सबसे ऊपरी भाग पर जल डालकर ही शुरू करें.
  • भगवान पशुपतिनाथ जी को अर्पित करने के लिए जो भी प्रसाद भक्तों ने श्रद्धा पूर्वक बनाया है उस प्रसाद को जलधारी में ना रखें.
  • बेलपत्र पूजा सामग्री का मुख्य अभिन्न भाग है और कई बार बेलपत्र भक्तों को उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसी स्थिति में जो बेलपत्र शिवलिंग पर पहले से चढ़े हुए है उन्ही बेलपत्रों को साफ करके भी शिवलिंग को अर्पित किया जा सकता है.
  • इस तरह से सुबह की पूजा करनी है और पूजा के बाद पशुपतिनाथ की आरती करनी है. और शाम को भी यही प्रक्रिया अपनाकर पुनः पूजा और आरती करनी है.
  • इसके साथ ही पूजा की थाली में 6 दिये (दीपक) रखने है, और उन 6 दिये में से 5 दिये मंदिर में प्रज्वलित करना है और बचा हुआ एक दिया अपने घर के दरवाजे के बाहर दाई तरफ प्रज्वलित करना है.

पशुपति व्रत में किस प्रकार से उपवास करें

पशुपति व्रत करते समय हमे यह स्मरण रखना चाहिए कि यह व्रत हम शंकर को प्रसन्न करने के लिए कर रहे हैं, इसलिए व्रत करते समय हमें भोजन करने का ध्यान ना करते हुए "श्री शिवाय नमस्तुभ्यं" मंत्र का जप करना चाहिए.
सुबह-सुबह हम सभी को फलाहार लेना चाहिए और शाम को पशुपति नाथ जी की पूजा होने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

लेकिन शाम को भोजन के पहले सभी को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए, उसके बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए.  परंतु भक्तों को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रसाद सबसे पहले उस व्यक्ति को मिले जिसने पशुपतिनाथ का उपवास रखा है, फिर उस प्रसाद को परिवार के अन्य सदस्यों को देना चाहिए.

किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है

भगवान शिव को पंचानंद भी कहा जाता है इसलिए जब हम भगवान शंकर की पूजा अर्चना करते है तो हमें पांच दियों को अवश्य प्रज्वलित करना चाहिए हैं, और पूजा अर्चना करते समय ही अपनी सभी इच्छाएं भगवान शिव के सामने प्रकट कर देना चाहिए. 

कितने समय तक पशुपति व्रत रखें

पशुपतिनाथ व्रत को कम से कम पांच सोमवार तक रखना चाहिए, लेकिन यदि कोई भक्त पांच से अधिक बार व्रत करना चाहता है तो वह अपनी इच्छानुसार कितनी भी बार व्रत कर सकता है.

उद्यापन करने की विधि

जब आप सफलतापूर्वक कम से कम पांच व्रत कर ले, और इसके बाद यदि आप उद्यापन करना चाहते हैं तो पशुपतिनाथ के व्रत का उद्यापन करने की विधि शुरू कर सकते है.
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को 5 सोमवार तक करना जरूरी होता है. तभी इस व्रत का मनोवांछित फल मिलता है.
5 सोमवार व्रत करने के बाद आप अगले किसी सोमवार को इस व्रत का उद्यापन कर सकते है. जिस सोमवार को आप उद्यापन करने जा रहे है, उस दिन आपको सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पूजा की थाली में पूजा का समस्त रखकर पूजा की थाली को तैयार करना है.
परंतु उद्यापन के लिए पूजा की थाली में 108 वस्तुएं रखना है चाहे वह मूंग हो चावल हो मखाने या आदि आदि.
अगर किसी कारण बस 108 वस्तुएं नहीँ मिल पाती हैं तो जितनी ही वस्तुएं उपलब्ध हो जाएं, भक्त उतनी ही वस्तुओं को लेकर श्रद्धा पूर्वक थाली में एकत्रित कर सकता है.
उद्यापन के दिन भी व्रत की तरह ही सुबह और शाम को पशुपतिनाथ जी की पूजा करनी है. और पूजा करने के बाद पुरोहित और मन्दिर को दान देना है.
उद्यापन के दिन प्रसाद थोड़ा ज्यादा बनाना चाहिए जिससे अधिक से अधिक लोगों को प्रसाद बांटा जा सके.

पशुपति व्रत करने में यदि बाधाएं आए तो क्या करें

अगर किन्ही परिस्थितियों के कारण हम किसी सोमवार को व्रत नही कर पाते है तो इस व्रत को हम अगले सोमवार को कर सकते है.
अगर कोई महिला व्रत कर रही है और उसमे माहवारी का दौर शुरू हो जाता है तो वह महिला इस व्रत को अगले सोमवार को कर सकती है। और इस तरह उसका व्रत खंडित नही होता है.

पशुपतिनाथ व्रत करने के लाभ 


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