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प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण जानकारी – पंडित प्रदीप मिश्रा

 Pradosh Vrat प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. --------------------------------------------------

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

 ये श्लोक लगभग सभी लोगों ने पढ़ा या सुना है,लेकिन जब इसका अर्थ पढ़ते है तो चौंक जाते हैं | 


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त्वमेव माता च पिता त्वमेव, 
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।


सरल-सा अर्थ है-

 'हे भगवान! तुम्हीं मेरी माता हो, तुम्हीं पिता हो, तुम्हीं बंधु हो, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य हो, तुम्हीं मेरे सब कुछ हो। और तुम ही मेरे देवता हो।'


बचपन से हम सभी ने यह प्रार्थना पढ़ रखी है।


मैंने अपने बहुत से मित्रों से पूछा कि 'द्रविणं' का अर्थ क्या है? लेकिन संयोग देखिये एक भी न बता पाया। अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द 'द्रविणं' पर  सोच में पड़ गए।


द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। आखिर 'लक्ष्मी' भी कहीं टिकती है क्या!


कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम'। ज़रा देखिए तो! समझिए तो!


सबसे पहले माता का स्थान है क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी और की जरूरत ही नहीं है। इसलिए हे प्रभु! तुम माता हो!


फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।


जब न माता रही और न ही पिता व भाई रहे तब सखा काम आ सकते हैं, इसलिए माता, पिता व भाई के बाद आता है - सखा त्वमेव!


वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आती है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।


और सबसे अंत में 'द्रविणं' अर्थात धन का स्थान है। जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो।


बार- बार रह - रह कर सोचता  हूं कि प्रार्थनाकार ने इस श्लोक में वरीयता क्रम में जिस द्रविणं यानि धन को सबसे पीछे रखा है, वहीं धन आजकल हमारे आचरण में सबसे पहले आगे क्यों आ जाता है? और इतना आगे आ जाता है कि इस कारण माता से लेकर पिता तक, बंधु (भाई) से लेकर सखा (मित्र) तक सब नीचे चले जाते हैं, और हमारे सभी रिश्ते पीछे छूट जाते हैं और धन आगे आ जाता है |


धन (द्रविणं) कीमती है, लेकिन उससे ज्यादा कीमती हमारे बाकि रिश्ते जैसे- माता, पिता, भाई, मित्र, और विद्या हैं। यह सभी धन (द्रविणं) से बहुत ऊँचे हैं |


बार-बार एक ही ख्याल आता है, द्रविणं सबसे पीछे ही रहे और बाकी रिश्ते द्रविणं से ऊपर ही रहने चाहिए। 

इस बात को हमेशा याद रखिये इस दुनिया में झगड़ा रोटी का नहीं होता है झगड़ा थाली का होता है! वरना भगवान हम सभी को रोटी तो देता ही है!


चांदी की थाली की लालसा यदि कभी हमारे रिश्तों की वरीयता क्रम को पलटने लगे तो हम सभी को इस प्रार्थना को जरूर याद कर लेना चाहिये।

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